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कोई पत्थर तो नहीं हूँ कि ख़ुदा हो जाऊँ / श्रद्धा जैन
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कैसे मुमकिन है, ख़मोशी से फ़ना<ref>तबाह</ref> हो जाऊँ
कोई पत्थर तो नहीं हूँ कि ख़ुदा हो जाऊँ
फ़ैसले सारे उसी के हैं, मिरे बाबत<ref>बारे में</ref> भी
मैं तो औरत हूँ कि राज़ी-ब-रज़ा हो जाऊँ
धूप में साया, सफ़र में हूँ क़बा<ref>लिबास</ref> फूलों की
मैं अमावस में सितारों की ज़िया<ref>चमक,रोशनी</ref> हो जाऊँ
मैं मुहब्बत हूँ, मुहब्बत तो नहीं मिटती है
एक ख़ुश्बू हूँ, जो बिखरूँ तो सबा<ref>ठंडी हवा</ref> हो जाऊँ
गर इजाज़त दे ज़माना, तो मैं जी लूँ इक ख़्वाब
बेड़ियाँ तोड़ के आवारा हवा हो जाऊँ
रात भर पहलूनशीं हों वो, कभी “श्रद्धा” के
रात कट जाए तो, क्या जानिये क्या हो जाऊँ
शब्दार्थ
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