भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कोई बिजली इन ख़राबों में घटा रौशन करे / इरफ़ान सिद्दीकी
Kavita Kosh से
कोई बिजली इन ख़राबों में घटा रौशन करे
ऐ अँधेरी बस्तियो! तुमको खुदा रौशन करे
नन्हें होंटों पर खिलें मासूम लफ़्ज़ों के गुलाब
और माथे पर कोई हर्फ़े-दुआ रौशन करे
ज़र्द चेहरों पर भी चमके सुर्ख जज़्बों की धनक
साँवले हाथों को भी रंगे-हिना रौशन करे
एक लड़का शहर की रौनक़ में सब कुछ भूल जाए
एक बुढ़िया रोज़ चौखट पर दिया रौशन करे
ख़ैर अगर तुम से न जल पाएँ वफाओं के चराग़
तुम बुझाना मत जो कोई दूसरा रौशन करे