भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कोई भले ही बढ़के गले से लगा न हो / गुलाब खंडेलवाल
Kavita Kosh से
कोई भले ही बढ़के गले से लगा न हो
मुमकिन नहीं कि उसको हमारा पता न हो
दिल का कभी हमारे तड़पना तो देखिये
जिस वक़्त इसके पास कोई दूसरा न हो
हमको तो डर ही क्या हैं, उन्हींको हँसेंगे लोग
यह ज़िन्दगी का साज़ कहीं बेसुरा न हो
पढ़ते हैं ख़त को हाथ में ले-लेके बार-बार
शायद लिखा हो आपने शायद लिखा न हो
काँटों से यों न जाइए आँचल छुड़ाके आज
रुकिए कि एक गुलाब भी उनमें खिला न हो