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कोई भी, कहीं भी / मनोज कुमार झा
Kavita Kosh से
कभी भी हास्यास्पद हो सकता हूँ
इससे भी नीचे का कोई शब्द कहो
कोई शब्द कहो जिसमें इससे भी अधिक ताप हो, अधिक विष
मनुष्यता को गलनांक के पार ले जाने वाला कोई शब्द कहो ।
कभी भी हो सकता हूँ हास्यास्पद - घर, बाहर कहीं भी
बच्चे के हिस्से का दूध अपनी चाय में डालते वक़्त
कभी भी कलाई पकड़ सकती है पत्नी ।
मेरे जैसा ही तो था जो उठाने झुका कोलतार में सटा सिक्का
मैं उसको चीन्ह गया, उस दिन एक ही जगह ख़रीदे हमने भुट्टे
जब उसको कह रहे हास्यास्पद तो मैं ही कितना बचा ।
कभी भी हो सकता हूँ हास्यास्पद -
और यह कौन बड़ी बात है इस पृथ्वी पर
जब हर इलाके में जूठा पात चाट रहा होता है कोई मनुष्य,
सुविधा में जिसे पागल कह डालते हो ।