Last modified on 9 जुलाई 2011, at 00:33

कोई मंज़िल नयी हरदम है नज़र के आगे / गुलाब खंडेलवाल


कोई मंज़िल नयी हरदम है नज़र के आगे
एक दीवार खड़ी ही रही सर के आगे

डाँड़ हम खूब चलाते हैं, मगर क्या कहिए!
नाव दो हाथ ही रहती है भँवर के आगे

देखिये ग़ौर से जितना भी हसीन उतना है
एक जादू का करिश्मा है नज़र के आगे

यों तो चक्कर था सदा पाँव में दीवाने के
नींद क्या ख़ूब है आयी तेरे दर के आगे

जोर चलता नहीं किस्मत की हवाओं पे, गुलाब!
जैसे चलती नहीं तिनके की लहर के आगे