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कोई मन को भा जाए चुन लेती हैं / सर्वत एम जमाल
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कोई मन को भा जाए चुन लेती हैं
आँखों का क्या है सपने बुन लेती हैं
लेकिन सपने केवल सपने होते हैं।
ख़ाली कमरा चीज़ों से भर सकता है
कोई कितना दुख हलका कर सकता है
हमने बाहर भीतर से घर-आँगन में
घायल होकर भी देखा है जीवन में
सारे दर्द अकेले सहने होते हैं
लेकिन सपने केवल सपने होते हैं।
पीड़ाओं की हद किस-किस को दिखलाएँ
आख़िर अपना क़द किस-किस को दिखलाएँ
पौधा वृक्ष बनेगा ये आशा भी है
सबको फल पाने की अभिलाषा भी है
उनकी बात करो जो बौने होते हैं
लेकिन सपने केवल सपने होते हैं।
क्या होता है बारहमासा क्या जाने
गर्मी जाड़ा धूप कुहासा क्या जाने
सारी चिंता अख़बारों की ख़बरों पर
बैठे रहे किनारे कब थे लहरों पर
जिनके नाख़ून चिकने-चिकने होते हैं
लेकिन सपने केवल सपने होते हैं।