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कोई मुँह चूम लेगा इस नहीं पर / रियाज़ ख़ैराबादी
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कोई मुँह चूम लेगा इस नहीं पर
शिकन रह जाएगी यूँही जबीं पर
उड़ाए फिरती है उन को जवानी
क़दम पड़ता नहीं उन का ज़मीं पर
धरी रह जाएगी यूँही शब-ए-वस्ल
नहीं लब पर शिकन उन की ज़बीं पर
मुझे है ख़ून का दावा मुझे है
उन्हीं पर दावर-ए-महशर उन्हीं पर
‘रियाज़’ अच्छे मुसलमाँ आप भी हैं
कि दिल आया भी तो काफ़िर हसीं पर