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कोई मौसम नहीं खुद को दोहरायेगा / वसीम बरेलवी
Kavita Kosh से
कोई मौसम नही ख़ुद को दोहरायेगा
तू गया, तो गया, फ़िर कहां आयेगा
रात मेरी नही, रात तेरी नही
जिसने आंखों मे काटी, वही पायेगा
लोग कुछ भी कहे और मै चुप रहूं
यह सलीक़ा मुझे जाने कब आयेगा
कोई मंज़र भरोसे के कािबल नही
तेरी आंखो का दु ख और बढ जायेगा
आसमां जब ज़मीनों की किस्मत लिखे
कोई इंसाफ़ मांगे, तो क्या पायेगा
उसकी आंखो मे क्या ढूंढते हो 'वसीम'
जैसे खोया हुआ वक़्त मिल जायेगा