कोनो है झालर धरे, कोनो है घड़ियाल /पंडित सुन्दरलाल शर्मा
कोनो है झालर धरे, कोनो है घड़ियाल।
उत्ताधुर्रा ठोंकैं, रन झांझर के चाल॥
पहिरे पटुका ला हैं कोनो। कोनो जांघिया चोलना दोनो॥
कोनो नौगोटा झमकाये। पूछेली ला है ओरमाये॥
कोनो टूरा पहिरे साजू। सुन्दर आईबंद है बाजू॥
जतर खतर फुंदना ओरमाये। लकठा लकठा म लटकाये॥
ठांव ठांव म गूंथै कौड़ी। धरे हाथ म ठेंगा लौड़ी॥
पीछू मा खुमरी ला बांधे। पर देखाय ढाल अस खांदे॥
ओढ़े कमरा पंडरा करिहा। झारा टूरा एक जवहरिया॥
हो हो करके छेक लेइन तब। ग्वालिन संख डराइ गइन सब॥
हत्तुम्हार जौहर हो जातिस। देवी दाई तुम्हला खातिस॥
ठौका चमके हम सब्बो झन। डेरूवा दइन हवै भड़ुवा मन॥
झझकत देखिन सबो सखा झन। डेरूवा दइन हवै भड़ुवा मन॥
चिटिक डेरावौ झन भौजी मन। कोनो चोर पेंडरा नोहन॥
हरि के साझ जगात मड़ावौ। सिट सिट कर घर तनी जावौ॥