भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कोयल कूक / चन्द्रकुंवर बर्त्वाल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कविता का एक अंश ही उपलब्ध है । शेषांश आपके पास हो तो कृपया जोड़ दें या कविता कोश टीम को भेज दें

अंचल में समेट पागलपन,
कलित स्मृतियाँ लाई,
आप बालिका से मिलने को
है इस बन में आई
धन हरीतिमा के नीचे
कुछ काल बैठ रसमाती
यौवन का उपहार उसे दे
उठी आज वह गाती
तुम नव जीवन की वर्षा-सी
घिरी हुई कुसुमों से
राज रही होगी विद्युत-सी
सुर धनुषी मेषों से