कोरी मटकी की ढकणी पर
हर रोज दुपहरी में
आकर बैठती है यह चिडिय़ा
और थोड़ी-सी चहचहाकर
पांखें खुजाकर
उचककर कर देती है बींठ
और तुम उसे देख
मुस्कुराते-भर हो महज।
मनमौजी !
2012
कोरी मटकी की ढकणी पर
हर रोज दुपहरी में
आकर बैठती है यह चिडिय़ा
और थोड़ी-सी चहचहाकर
पांखें खुजाकर
उचककर कर देती है बींठ
और तुम उसे देख
मुस्कुराते-भर हो महज।
मनमौजी !
2012