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कोरोना काल / ऋता शेखर 'मधु'

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मोह बढ़े जब-जब धन से तब, ईश्वर ही सिखलायेगा।
अपना घर अपना रिश्ता ही, काम हमेशा आयेगा॥

जो लौटें उनका स्वागत हो, कहती यह रीत पुरानी।
कोरोना के भीषण पल की, होगी अब नई कहानी॥
अपनी छत अपनी होती है, चाहे छेद कई होते।
खो देते जब नासमझी में, बाद बहुत वे हैं रोते॥
जन्मभूमि से अपनापन ही, गाँव सभी को लायेगा।
अपना घर अपना रिश्ता ही, काम हमेशा आयेगा॥

मजदूरों को भूख लगी जब, मालिक ने ठुकराया है।
प्रेम भरा आँचल जननी का, याद बहुत तब आया है॥
चल चल कर बेहाल हुए हैं, सारा दिन सारी रातें।
सूक्ष्म जीव से जुड़ी मिलीं, जाने कितनी ही बातें॥
'कोविड के कारण लौटे थे' , यह इतिहास बतायेगा॥
अपना घर अपना रिश्ता ही, काम हमेशा आयेगा॥

छेड़छाड़ की अति होने से, धरती है धीरज खोती।
कभी बाढ़ भूकंप कभी फिर, जग में बीमारी बोती॥
बड़ी-बड़ी बातें कर-कर के, मनुज न सबको बहलाना।
नियमबद्ध जीवन अपना कर, नेक नागरिक कहलाना॥
काबू में मन रखने वाला, नया जमाना पायेगा।
अपना घर अपना रिश्ता ही, काम हमेशा आयेगा॥

सामाजिक दूरी का पालन, मुँह को ढककर करना है।
भारी होगी चूक एक की, दंड सभी को भरना है॥
बिना परवाह किए जान की, खड़े रहे सेवाकर्मी।
कुछ अपनाकर लापरवाही, अड़े रहे थे हठधर्मी॥
मानव हित की सोच न पाए, उसे कौन समझायेगा।
अपना घर अपना रिश्ता ही, काम हमेशा आयेगा॥