कोशी के तीरेॅ-तीरेॅ / भाग 1 / चन्द्रप्रकाश जगप्रिय
हे कोशी मैया
तोहरोॅ नैहर छेकौं
ई उत्तरांग
जखनी नै रहै
कोनो हिमालय
नै रहै तिब्बत के पठार
नै रहै ऐवरेस्ट
आरो नै रहै
काँही भी कंचनजंघा के
दूर-दूर ताँय फैललोॅ
गठलोॅ बाँह
तबेॅ हे कोशी माय
तोहरे नैहर रहौं
यहाँ-सें-वहाँ ताँय
वहाँ-सें-यहाँ ताँय
यानी
गंगा के छोरी केॅ छूतें
मोरंग के पार
तोहें अचेत खेलतें रहौ
कोस-कोस भरी के
आपनोॅ ऐंगना में
कि अनचोके
तोरोॅ रूप सें
मोहित होय केॅ
एकठो कोय महाबली
निवेदन राखलकै
तोहरोॅ सम्मुख
”हे अपरूप सुन्दरी
तोहरोॅ रूप
आरो शक्ति देखी केॅ
हम्में मुग्ध छी
हम्में छियै
राकस जाति के महाबली
हेनोॅ कोय नै छै
जे हमरा से पराजित नै
मतरकि आय
हम्में आपना केॅ
तोहरोॅ सम्मुख
एकदम सें हारलोॅ पावै छी
हे अपरूप सुन्दरी
तोंय हमरोॅ निवेदन
स्वीकार करोॅ।“
तबेॅ हे माता
तोहें
ऊ राकस महाबली केॅ
बुद्धि सें
मात दै लेली
आपनोॅ किंछा राखलौ
ऊ राकस सें बोललौ
”हे बलीराज
जों तोहें
हमरोॅ छोटो रङ धारो केॅ
आपनोॅ ताकत बलोॅ पर
समेटी लेभौ
तेॅ हम्में तोरोॅ होय जैभौं
हमरा यै में
की आपत्ति होतै
हे राक्षसराज
हम्में तोरोॅ कनियैन
होय जैभौं।“
ई सुनत्हैं
ऊ राकस
खुशी सें बेमत्त
भै गेलै
आरो छालना शुरू करलकै
तोरोॅ धारा केॅ
मतरकि
हे कोशी माय
तोरोॅ धारा केॅ
केकना समेटेॅ पारतियै
आकाशोॅ केॅ
आपनोॅ बाँही में
के भरेॅ पारलेॅ छै
के सौंसे धरती केॅ
आपनोॅ गोदी में
उठावेॅ पारलेॅ छै
देवता छोड़ी केॅ
कोय मनुक्खोॅ के वश के बात
ई नै हुवेॅ पारेॅ
हे कोशी माय
तोहें धरती पर
भगवती मैय्ये नी छेकौ
राकस के की विसात
कि वें
समेटेॅ सकेॅ तोरोॅ माया
समेटेॅ सकेॅ तोरोॅ ओप।
तोहरोॅ रूप के
माया में पड़ी-पड़ी केॅ
गवैनें छै
राकस नें
आपनोॅ प्राण
धरती केॅ
लिैनें छौ त्राण
हे भगवती कोशी माय
जों-जों
तोहरोॅ धार केॅ बान्है लेली
आपनोॅ ताकत
आरो देह केॅ बढ़लकै
वै राकश
तहूँ हे कोशी माय
बढ़ले चलली गेल्हौं
होने वेग
होने विस्तार सें
राकस समाय गेलै
तोहरोॅ रेत के पेटी में
मजकि
हे कोशी माय
आइयो तोहरोॅ
क्रोध शांत नै भेलोॅ छौं
तोहें होने खलखल
बही रहलोॅ छोॅ।
माय कोशी
तोहें भगवती छेकौ
साक्षात पार्वती माय
आकि
पार्वती माय के बेटी