कोशी के तीरेॅ-तीरेॅ / भाग 3 / चन्द्रप्रकाश जगप्रिय
हे कोशी माय
नैहरा में आवै सें पैहिलें
तोहें सातो बहिन
अलगे-अलग चलै छोॅ
एक बहिन-इन्द्रावती
दुसरी-सुनकोशी
तेसरी-तामा कोशी
चौथी जे होय छै मैया
ऊ छेकै-लिक्षु कोशी
पाँचवी बहिन तोरोॅ
खलखल कै छै
अरुण कोशी
छठवीं बहिन तोरोॅ
तसमूर कोशी हे मैय्या
सातवीं बड़की बहिन
तोहीं हे माय
हे महाकोशी
खोली दै छौ बान्हन
सब्भे महारासोॅ के
तोहें
सावन बीततें नै बीततें
तोरा की मालूम
कि तोरोॅ ई महारास के चलतें
की बीतै छै
तोरोॅ बेटी सिनी पर
तोरोॅ बेटा सब पर
आरो
तोरे बेटी-बेटा के
लाखो-लाख बुतरुआ पर
घरोॅ सें उजड़लोॅ
बेघर होलोॅ तोरोॅ बेटा
राखी आवै छै
आपनी कनियाइन केॅ
कोय साहू-सामन्त के
ड्योढ़ी पर ई सोची
आपनोॅ पेट तेॅ
पोसेॅ सकतै
बेची आवै छै
आपनोॅ गोदैले नाँखी
बच्चा केॅ
कोय धनिकोॅ कन
आरो फेनू शुरू होय छै
एक अनन्त यातना
बाल मजूरी वाला।
बचपन नै बीतै छै
जुआनियो
बीती जाय
कोशी के बुतरू के
केकरो टहलवाई करतें-करतें
आरो नै तेॅ
ढेर के ढेर
ई अंगुत्तराप के नौनिहाल
जिनगी काटै छै
नेपाल
कलकत्ता
उत्तर प्रदेश
केरोॅ ईंटा भट्टा में
बड़ोॅ-बड़ोॅ फैक्ट्री में
आकि
कालीन के कारखाना में
जेकरा पीना छेलै
कोशी के पानी
खेलना छेलै कोशी के माटी पर
जेकरा खाना रहै
कोशी के उपज
ऊ खाय छै-धुआँ
पीयै छै-धुआँ
खेलै छै
घनघोर अन्हरिया साथें
बाकी जिनगी में।