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कोहरे का तंबू / प्रकाश मनु
Kavita Kosh से
कोहरे ने है तंबू ताना
इस तंबू के भीतर ही है,
सारे जग का आना-जाना!
धुँधली सड़कंे, धुँधली गलियाँ
दूर-दूर तक धुँधला मौसम,
नहीं दीखते पेड़, नहीं धर
इक सन्नाटे में हैं हम-तुम।
दूर कहीं पर गूँज रहा है,
नन्ही चिड़िया का गाना!
उड़कर कहाँ गए सब पेड़
कैसे गायब सारे रस्ते,
एक धुँधलके के तंबू में
छिप बैठीं गलियाँ, चौरस्ते।
दूर खड़ा हँसता रहता है,
एक जादूगर बड़ा सयाना!
दूर बत्तियाँ कुछ झलकी हैं
पर वे भी तो इतनी धुँधली
समझ न आया किसने छीनी
इनकी सारी शान रुपहली।
चुप-चुप, चुप-चुप बोल रही हैं-
भाई, सँभल-सँभलकर जाना!
झिझक-झिझककर चलतीं कारें
मानो रास्ता भूल गईं हैं,
एक साइकिल इतनी धीमी
जैसे सपने में चलती हो!
किसने बदली सबकी चाल,
शायद यह है खेल पुराना!
कोहरे ने है तंबू ताना!