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को तुम हो इत आये कहाँ ? घनश्याम हौँ, तौ कितहू बरसो / रसकेश
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को तुम हो इत आये कहाँ ? घनश्याम हौँ, तौ कितहू बरसो ।
चितचोर कहावत हैँ हम तो ! तँह जाहु जहाँ धन है सरसो ।
रसिकेश नये रँगलाल भले ! कहुँ जाय लगो तिय के गर सो ।
बलि पे जो लखो मनमोहन हैँ ! पुनि पौरि लला पग क्योँ परसो ।
रसकेश का यह दुर्लभ छन्द श्री राजुल मेहरोत्रा के संग्रह से उपलब्ध हुआ है।