भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कौने देलकौ अठिया गे मठिया / अंगिका लोकगीत

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

   ♦   रचनाकार: अज्ञात

प्रस्तुत गीत में कन्या की माँ के साथ परिहास करते हुए कहा गया है कि तुम्हारे ये वस्त्राभूषण तुम्हारे अमुक-अमुक संबंधियों के दिये हुए हैं।

कौने देलकौं<ref>दिया</ref> अठिया<ref>मठिया का अनुरणानात्मक प्रयोग</ref> गे मठिया<ref>कलाई का एक आभूषण</ref>, कौने देलकौं तार<ref>गले की सिकरी</ref> गे।
कौने देलकौ बनारसी चोलिया, जेबर सेॅ<ref>जेवर से</ref> घुँघुरा लगाय गे॥1॥
आँगे, समधी देलकौ अठिया गे मठिया, जमैया देलकौ तार गे।
ननदोसिया देलकौ बनारसी चोलिया, जेबर सेॅ घुँघुरा लगाय गे॥2॥
आँगे, कौने ऐलौ गलिया कुचिया, कौने ऐलौ आधी रात गे।
कौने ऐलौ भोर भिनुसरबा, भइ गेलौ फरछ<ref>भोर, जब रात का अँधेरा मिट जाता है और आसमान साफ हो जाता है।</ref> बिहान गे॥3॥
आँगे, समधी ऐलौ गलिया कुचिया, जमाय ऐलौ आधी रात गे।
ननदोसिया ऐलौ भोर भिनसरबा, भै गेलौ फरछ बिहान गे॥4॥

शब्दार्थ
<references/>