कौन-से ये मेघ छाए? / रामगोपाल 'रुद्र'
कौन-से ये मेघ छाए?
नींद के माते हुए-से, स्वप्न से शशि के जगाए!
अश्रु किसकी याद के ये किन बरुनियों से टँगे हैं?
सुख-दुखों के दाग, धूमिल चित्र, अम्बर पर रँगे हैं;
कौन किसकी चाह किसकी राह पर आँखें बिछाए?
आह के हलके परों पर दाह का अरमान ढोते,
पुतलियों में प्राण, लौ के प्यार के सपने सँजोते;
ये चले किस दर्द की तस्वीर—सी दिल में बसाए?
स्वर-सुरभि से किस भ्रमर की, मन-सुमन ये खिल रहे हैं?
मिल रहे हैं भाव-से, या, घाव दिल के सिल रहे हैं?
मौन को ये कौन अपनी ज्योति से हैं जगमगाए?
हूक हैं उस कू-कुहू की, मूक जो रटके हुई है?
या शलभ की साँस है, जो दीप के दिल की सुई है?
त्याग यह किसका, निराली वासना मन में छिपाए?
ये विरह-संदेश किस गिरि से किधर को जा रहे हैं?
कौन, किसकी चेतना को, फिर 'धवल' ढो ला रहे हैं?
किस कन्हैया की तरफ़ किस राधिका के श्वास धाए?
'पी कहाँ?' रटता पपीहा, चुग रही चिनगी चकोरी;
पी कहाँ? चकई विकल है, चीखती पगली मयूरी;
पूछता कण-कण प्रकृति का पी कहाँ? कोई बताए।
नीलसागर में उठे क्या फेन, जो तिरते चले हैं?
या नए नल-दूत हैं, जो शून्य-मानस में पले हैं?
कल्पना के पोत किस कवि-बाल ने जल में बहाए?
हे गगनचारी, रुको, उतरो, तनिक विश्राम कर लो;
ध्वंस के अपने स्वरों में 'रुद्र' का शिवराग भर लो,
तुम बनो आनन्द जीवन, विश्वकानन मुसकराए!
चित्रकार के मेघ छाए!