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कौन अपना? / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’

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41
सिर्फ़ दो बोल,
जो मन को सींचते
वे सबको खींचते,
नील नभ में
कुछ भी विलीन हो,
वे ही रह जाएँगे।
42
सोया हुआ जो
मन के द्वार आके
जगा देता है कोई,
जन्मों की नींद
रस-बाँसुरी बजा
भगा देता है कोई.
43
प्रभु का लेखा
हमको चलाता है
नाच भी नचाता है
जब चाहता,
मन्त्र बन मन में
उतर ही जाता है।
44
तेज़ हवाएँ
घायल हुए डैने
उड़ें किधर जाएँ?
कोहरा छाया
जीवन-पथ पर
आहत हैं दिशाएँ।
45
कौन अपना?
हर साथी हो गया
इक टूटा सपना,
शब्दों की कीलें
चुभती दिन-रात
बोलो किसे बताएँ!