कौन कहता है बढ़ा शौक़ इधर से पहले / जमील मज़हरी
कौन कहता है बढ़ा शौक़ इधर से पहले
किस ने देखा था किसे तिरछी नज़र से पहले
मुतमइन हो ले ज़रा अहल-ए-नज़र से पहले
पर्दे आँखों के उठा पर्दा-ए-दर से पहले
अभी तालीम-ए-वफ़ा यानी जफ़ा का नहीं वक़्त
तर्बियत-ए-शौक़ की हो लुत्फ़-ए-नज़र से पहले
हाँ मोहब्बत में मज़ा है मुझे इंकार नहीं
मगर ऐ ज़ौक़-ए-ख़लिश दर्द-ए-जिगर से पहले
सालिक-ए-राह-ए-वफ़ा है दिल-ए-आशुफ़्ता-मिज़ाज
मुज़हदा-ए-गुम-रही-ए-शौक़-ए-सफ़र से पहले
जुरअत-ए-अर्ज़-ए-तमन्ना पे ख़फ़ा हो लेना
मुस्कुराओ तो ज़रा नीची नज़र से पहले
मौसम-ए-कैफ़ में बे-कैफ़ी-ए-जज़्बात न पूछ
दिल-ए-बुलबुल है फ़सुर्दा गुल-ए-तर से पहले
जुम्बिश-ए-मुज़्तरिब-ए-पर्दा-ए-इस्मत की क़सम
जलवे बे-ताब हुए ज़ौक़-ए-नज़र से पहले
जिन से बद-नाम हुए इश्क़ के जज़्बात-ए-लतीफ़
वो इशारे थे इधर से के उधर से पहले
दो इरादों में जो हाएल थे हया के पर्दे
किस ने सरकाए इशारात-ए-नज़र से पहले
क्यूँ कोई पहलू-ए-जानाँ में जगह पाए 'जमील'
आज हम बज़्म में पहुँचेंगे क़मर से पहले