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कौन जाने किसका ख़त है / हरिवंश प्रभात
Kavita Kosh से
कौन जाने किसका ख़त है, या किसी की डायरी है।
जब लिफ़ाफ़े पर भी उसने कर दी शेरो शायरी है।
ख़त्म होते जा रहे हैं, जो कवियों के विचारें,
जो चुनौती सामने है, छोड़ना बस कायरी है।
ना ही रोना है अतीत पर, ना ही चिंता भविष्य की,
आगे बदक़िस्मत दिखाता, वक़्त भी रिटायरी है।
मैं समझता ही रहा कि बोल मीठे हैं तेरे भी,
बोल निकले तेरे जैसे, हो बे चीनी चाय री है।
अस्ल में इनाम का हक़दार तो प्रभात ही था,
हो रही है इस व्यवस्था पर, हमेशा हाय री है।