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कौन बरहम है ज़ुल्फ-ए-जानाँ से / शेख़ अली बख़्श 'बीमार'
Kavita Kosh से
कौन बरहम है ज़ुल्फ-ए-जानाँ से
तंग हूँ ख़ातिर-ए-परेशाँ ये
मुज़्दा ऐ ख़ार-ए-दश्त दस्त-ए-जुनूँ
गुज़रे हम दामन ओ गिरेबाँ से
दाँत किस का है जाम पर साकी
मय टपकती है अब्र-ए-नेसाँ से
गर यही रंग है ज़माने का
बाज़ आया मैं कुफ्र ओ ईमाँ से
बैठ जाता है ओ के मेरे पास
जो निकलता है बज़्म-ए-जानाँ से
हूर आशिक़-नवाज़ है कोई
पहले पूछेंगे हम ये रिज़वाँ से