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कौन मानेगा नसीहत ही मेरी / ओमप्रकाश यती
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कौन मानेगा नसीहत ही मेरी
खुल गई है जब हक़ीक़त ही मेरी।
चुटकुले सब आपके दिलचस्प हैं
अनमनी कुछ है तबीयत ही मेरी।
कौन अपमानित कराता है मुझे
सच कहूँ तो सिर्फ़ नीयत ही मेरी।
साथ होगा कौन अन्तिम दौर में
तय करेगी अब वसीयत ही मेरी।
यार तुम भी सज गए बाज़ार में
पूछते फिरते थे क़ीमत ही मेरी।