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कौन मासे बिजुली चमकि गेलै, कौने मासे बूँद बरिसै हे / अंगिका लोकगीत

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   ♦   रचनाकार: अज्ञात

बिजली की चमक और वर्षा की बूँदो के बीच पति से समागम से गर्भ रहने के बाद निश्चित समय पर प्रसव-वेदना प्रारंभ होती है। प्रसव-पीड़ा की बेचैनी में वह यह अनुभव करने लगती है कि इस दर्द का कारण मेरा पति ही है। वह सोचती हैकि ऐसे समय यदि उसके पति मिल पाते, तो वह उनकी मरम्मत करती और आधा दर्द बाँट लेने को कहती।

कौन मासे बिजुली चमकि गेलै, कौने मासे बूँद बरिसै हे।
ललना रे, कौने मास परभु घरबा ऐलै, कौने मासे गरभिया रहलै हे॥1॥
जेठ मास बिजुली चमकि गेलै, अखाढ़े मास बूँद बरिसै हे।
ललना रे, सावन मास परभु घर ऐलै, भादव मास गरभिया रहलै हे॥2॥
घड़ी रात बितलै पहर रात, ओरो दोसर रात हे।
ललना रे, होएतेॅ भिनुसरवा दरद उठलै, दरदे बेयाकुल भेली हे॥3॥
अहि<ref>इस</ref> अवसर परभु जी के पैती, त लाते मूके खूनी<ref>रौंद देती</ref> देती हे।
ललना रे, चुरकी<ref>जुल्फ</ref> नवाय<ref>झुकाकर</ref> घूँसा मारती, दरदिया आधा बाँटी लेहो हे॥4॥

शब्दार्थ
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