भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कौन यहाँ खुशहाल बिरादर / शम्भुनाथ तिवारी
Kavita Kosh से
कौन यहाँ खुशहाल बिरादर
बद-से-बदतर हाल बिरादर
क़दम-क़दम पर काँटे बिखरे
रस्ते-रस्ते ज़ाल बिरादर
किसकी कौन यहाँ पर सुनता
भटको सालों-साल बिरादर
मिल जाएँगे रोज़ दरिंदे
ओढ़े नकली ख़ाल बिरादर
समय नहीं है नेकी करके
फिर दरिया में डाल बिरादर
वह क्या देगा ख़ाक़ किसी को
जो ख़ुद ही कंगाल बिरादर
जब से पहुँच गए हैं दिल्ली
बदल गई है चाल बिरादर
लफ़्फ़ाजी से बात बनेगी
ख़ुशफहमी मत पाल बिरादर
हम बेचारों की उलझन तो
अब भी रोटी-दाल बिरादर