भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कौन वक़्त ऐ वाए गुज़रा जी को / 'ज़ौक़'
Kavita Kosh से
कौन वक़्त ऐ वाए गुज़रा जी को घबराते हुए
मौत आती है अजल को याँ तलक आते हुए
आतिश-ए-ख़ुर्शीद से उठता नहीं देखा धुवाँ
आ खड़े हो बाम पर तुम बाल सुखलाते हुए
चाक आता है नज़र पैरहन-ए-सुब्ह-ए-बहार
किस शहीद-ए-नाज़ को देखा है कफ़नाते हुए
वो न जागे रात को और ज़िद से बख़्त-ए-ख़ुफ़्ता की
बज गया आख़िर गजर ज़ंजीर खड़काते हुए