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कौन सुने अब किसकी बात / देवमणि पांडेय
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कौन सुने अब किसकी बात
ज़ख़्मी हैं सबके जज़्बात।
रात में जब जब चांद खिला
गुज़री यादों की बारात।
तेरा साथ नहीं तो क्या
ग़म का लश्कर अपने साथ।
सावन- भादों का मौसम
फिर भी आँखों से बरसात
महफ़िल में भी दिल तनहा
चाहत ने दी यह सौग़ात।
पास कहीं है तू शायद
होंठो पर हैं फिर नग़मात।
जिसने देखे ख़्वाब नए
बदले हैं उसके हालात।