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कौन है? / महेश अनघ
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कौन है ? सम्वेदना !
कह दो अभी घर में नहीं हूँ ।
कारख़ाने में बदन है
और मन बाज़ार में
साथ चलती ही नहीं
अनुभूतियाँ व्यापार में
क्यों जगाती चेतना
मैं आज बिस्तर में नहीं हूँ ।
यह, जिसे व्यक्तित्व कहते हो
महज सामान है
फर्म है परिवार
सारी ज़िन्दगी दूकान है
स्वयं को है बेचना
इस वक़्त अवसर में नहीं हूँ ।
फिर कभी आना
कि जब ये हाट उठ जाए मेरी
आदमी हो जाऊँगा
जब साख लुट जाए मेरी
प्यार से फिर देखना
मैं अस्थि-पंजर में नहीं हूँ