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कौरव सेना का वरनन / लोकगीता / लक्ष्मण सिंह चौहान
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गुरुवर बिप्रदेव! मोन करी ताकू रामा।
अपनो हीनै के सेनापति हो सांवलिया॥
चलु जरा देखी सुनि लेबैय ठीक ठाक करि।
आंधियो के फूँकैय बाला शूर हो सांवलिया॥
सनमुख लरैय बाला धरती डोलाबैय बाला।
ज्वालामुखी फोरैय बाला शुर हो सांवलिया॥
आप, अरु भीषम दादा वर्ण भैया साथ में हो।
जे रैनियों में कभीयों नैंय हारैय हो सांवलिया॥
कृपाचार अश्वथामा आरु बिकरणमा हो।
सोमदत्त के लाल भूरिशरबा हो सांवलिया॥
ताकु! ताकु गुरुदेव! आरु बड़ शूरमा हों
युध के हूनर में यतुर हो सांवलिया॥
ननिको न मोह माया केकरो ल राखैय रामा।
हमरा ल प्राण जेकी देतैय हो सांवलिया॥