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कौशल्या / छठमोॅ खण्ड / विद्या रानी

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माता सें विदा लेना छेलै,
जल्दिये वन गमन करना छेलै !
लछमण तेॅ खुब्बे गोस्सैलकोॅ,
आंख-चढ़ाय कैकेयी केॅ ताकलकै ।

कौशल्या महलोॅ में गेलोॅ राम,
सब गुण भरलोॅ सुखोॅ के धाम ।
छत्रा चँवर बिनु राम के देखी केॅ,
समझेॅ नै पारलकी समय परेखी केॅ ।

हे सुत कालकोॅ छेलोॅ उपवास,
आज होते ढेरी पूजा पाठ ।
कुछु दही फल सनी पारन करी लेॅ,
तबेॅ जइहो राज्याभिषेक करै लेॅ ।

सुन्दर आसन रामोॅ के देलकै,
देखी केॅ श्री राम कहलकै।
नै बैठवोॅ इ आसन पर,
जाय रहलोॅ छी हम्में वन में।

राम कहलकोॅ सबटा बात,
आज्ञा दहु हे मोरी मात।
हमरा मिललोॅ छै वनोॅ के राज,
भरत करतै अयोध्या में काज।

तात के हमरा पर अति स्नेह,
राज छोड़ी भेजलको वनोॅ के गेह।
छोड़ो राज्याभिषेक केरोॅ बात,
वन गमन आज्ञा दै देहु मात।

कौशल्या गिरि पड़ली भहराय,
फरलोॅ गाछ जेना कुल्हाड़ी काटी जाय।
कि कुजोग इ होलै राम,
कौन पूजा में भेलै व्यवधान।

जपतप हवन सभै तेॅ करलियै,
सुत मंगल लेॅ कलश धरलियै।
राति भर सुमरलियौ तोरोॅ नाम,
तवेॅ केना होलै इ परिणाम।

कौशल्या के मनोॅ पर होलै आघात,
जैन्हें सुनलकै वन गमन के बात।
काल बनावे छेलोॅ राजा आज वनवास,
केना होलै इ रंग आघात।

हे सुत तोहें हमरा समझावोॅ,
राजभवन के नीति बतावोॅ।
केना समय बदली गेलै ।
विधाता वाम होइये गेलै ।

केना रहबोॅ केना जीवोॅ,
केना राखवोॅ मनोॅ के धीर ।
राज्याभिषेक के बदला श्री राम,
जाय छै वन सहैला पीर ।

जौं हम्में बाँझे रहतिये,
एक्के दुख सहेला पड़तिये ।
पुत्रावती बनी केॅ की पैयलां,
सौंसे जीवन वियोग ही सहलां ।

हमरा लेॅ तेॅ मौतो नै छै,
नै तेॅ अभिये लेतिये उठाय ।
कौशल्या कलपे कानें लागली,
बछड़ा लेॅ जेना डिकरे गाय ।

ऐन्होॅ पीड़ा देलेॅ कैकेयी,
जेकरोॅ कहीं नै छिकै अंत ।
कहियो नै ईष्र्या करलियौं,
हरदम प्यारी रहलेॅ कंत ।

हम्में छी बड़की तइयो नै कभी,
तोरा दुख देने छी ।
सभै दिन प्यारी बनी रहलेॅ,
तबे केना छै जहर उगललेॅ ।

कमल रंग कोमल धरम के रूप,
राजकुमार राम छै गे माय ।
की करौं कहाँ की राखौं,
दुखों सें हिय फाटलो जाय ।

केना विधि ई भाग पलटलै,
कहाँ राज तेॅ कहाँ वन ।
ऐन्हों दुख दुश्मनों केॅ नै दीहोॅ,
वेदना भरलोॅ जीवन के छन ।

हे भवानी की करलोॅ छौ,
कैन्हें ऐना मति मारलोॅ छौ ।
चक्रवर्ती राजा छै पराक्रमी,
कैकेयी सें केना हारलोॅ छै ।

जौं तौं छौ प्यारी तेॅ तोहें,
भरत के राजा देतिहौ बनाय ।
हमरोॅ राम के इहाँ रहेॅ देतिहौ,
राखतिहों हम्में हृदय लगाय ।

राजपाट धन आरू दौलत,
हमरा तेॅ कुछु चाहियोॅ नै ।
माय बेटा दुनु मिली केॅ,
तोरा सिनी केॅ करतिहौं जय ।

राम तेॅ प्रिय छै हुनको भी,
इ तेॅ सभै जानै छै ।
राति भरी में इ की होलै,
राजा कैन्हें कानै छै ।

तोहें बतावोॅ हे सुत राम,
के तोरा वनवास देनें छौं ।
पिता की माता पिता दुनु नें,
वन के राज पढ़ैलेॅ छौं ।

ज्यों खाली पिता नें देलखौं,
जाय केॅ कोय जरूरत नै ।
कैन्हें कि माता ऊपर होय छै,
यही परम्परा आवि रहलोॅ छै ।

ज्यों माता पिता दुनु देले छौं,
तबेॅ तेॅ अवश्य वन जाना छौं ।
कैन्हें कि उचो होय छै आसन,
माता से बढ़ि विमाता के ।

की करौं की नै सोचै कौशल्या,
धरम स्नेह सें मन उभचुभ छेलै ।
जेना राम छै वैन्हें भरत,
पति आज्ञा पालन भी करना छेलै ।

आज्ञा मानलौं बढ़िया करलौं,
यही तेॅ धरमोॅ के धरम छिकै ।
मतरकि तोरा बिना केना रहतै,
राजा आरू भरत सोचै छियै ।

माता पिता दुनु कहि देलकौ,
तोरा लेॅ वन सौ अयोध्या छै ।
वनदेवी वनदेवता माता पिता छौं,
वनवासी पशु पक्षी प्रजा छै ।

वानप्रस्थ में राजा जइवे करै छै,
इ कोय अनहोनी नै छै ।
खाली उमिर देखी दुख होय छै,
मन तड़पै हिय फाटि रहलोॅ छै ।

मन धरि धीर विवेकयुक्त वाणी,
कहेॅ लागली विह्नवल कौशल्या रानी ।
ज्यों कहवै हम्मू चलवै साथ,
सोचवोॅ रोकै लेॅ हठ ठानलकै मात ।

हे पुत्रा मनोॅ में धीर धरै छी,
कुलदेवी कुलदेवता मनावै छी ।
सभै ठियाँ वही रक्षा करौं,
भूत, प्रेत राक्षस सं नै डरौं ।

आगे अयोध्या होतै अनाथ,
तोरा रहतें सब छेलै सनाथ ।
अखनी सब हुल्लास भरलोॅ छेलै,
आशा निराशा में बदली गेलै ।

इ नगर होलै अभागा वन भागवान,
जहाँ जाय रहतै धरमोॅ के खान ।
राम तोहें बढ़ियाँ सें वन जावोॅ,
चैदह बरस काटि लौटि आवोॅ ।

काल विपरीत होलै भगवान,
पुन्न खतम होय गेलै इहाँ ।
हम्में जीवी केॅ की करवै,
जीते जी मरी जइवै इहाँ ।

विरहोॅ सें भरलोॅ जाय छेलै मन,
केना जाय लेॅ देवै आपनोॅ पुत्राधन ।
मतरकि एही तेॅ सच छेलै,
कुछु नै बदलेॅ पारै छेलै ।

दुखो में दुख आरू बढ़िये गेलै,
बात सुनि सीता जबेॅ अइलै ।
चरण धरि बैठली आँखो नीचे,
होली व्याकुल माता बात सोची केॅ ।

है रंग कोमल शरीर छै सीता,
माता-पिता परिजन प्रिय छै सीता !
एकरोॅ की होतै भगवान,
एही लेॅ जनक देलकै कन्यादान ?

मुँहोॅ सें नै बोललकै सीता,
मुद्रा ओकरोॅ यही कहै छेलै ।
हमरा लेॅ की आज्ञा, छीकै,
साथें हम्में जइबे आपनोॅ पिय के ।

हृदय कठोर होय गेलै हुनका,
राम जाय सीता फिनु जाय छै ।
कहाँ सुकुमारी कहाँ कठोर वन,
छलनी-छलनी होलोॅ छेलै मन !

बोललकै राम तोंहें की कहै छौ,
सीता संग में लै जाय छै की नै !
की सीता रहतै हमरा सिनी के पास,
जे कहौ, करवै, माता छेली उदास ।

मन हहरै छै हिय फाटै छै,
सीता केना वनोॅ में रहतै।
वनवास तेॅ तोरा मिललोॅ छै,
सीता केॅ तेॅ कुछ नै कहनें छै ।

सीता केॅ यही रहेॅ दहु राम,
इतना तेॅ हमरोॅ पूरा करोॅ काम ।
इ तेॅ हमरोॅ सहारा बनतै,
तोरोॅ थाती जोगी केॅ राखवै ।

धीरज धरि रामोॅ के माय,
हिरदय केरोॅ बात कहनें जाय ।
ऐन्होेॅ विपत्ति पड़ला पर भी,
मरजादा के पार नै जाय ।

बुद्धि विवेक कहियो नै छोड़लकै,
समयानुसार विचार करलकै ।
कोय नै जानै की होतै करल,
विधि मोॅन जानि केॅ धीर धरलकै ।

हमरोॅ प्राणोॅ के प्रिय छै,
कुछु काम नै करवैनें छियै ।
जनकपुरी के सुकुमारी सीता,
दीप बाति नै टरबैने छियै ।

सीता छिकै मानस हंसिनी जुकां,
केना करि केॅ रहेॅ पारतै उहां ।
इ जे जाय लेॅ कही रहलोॅ छै,
की फल होतै नै बुझी रहलोॅ छै ।

राज केरो आशा दे वन देलखौं,
एकरोॅ तेॅ दुख नै छै तनियो।
राजा, भरत, प्रजा केना रहतै,
सोचै छियै कांपै छै हियेॅ ।

कठिन धरणी पर गोड़ नै धरनें छै,
चित्रा के वानर देखी डेराय छै ।
हाथी, सिंह, राक्षस दुष्ट जन्तु,
ओकरा बीच सीता केना रहतै ।

मतरकि कौशल्या आपनै नै कहलकै,
रामो सें आज्ञा मांगी लेलकै ।
जे तोहें उचित समझौ हे राम,
वही करोॅ धीर धरौ तन राम ।

राम नानाविध सीता समझैलकै,
सासु सेवा केरोॅ वचन देलकै ।
जंगल भयंकर कही केॅ डरैलकै ।
पुत्रावधू केरोॅ कर्तव्य बतैलकै ।

तखनियो कुछु नै बोललकी रानी,
अधिकार देखाय केॅ बात नै कहलकी ।
सिद्ध योगी रंग बनी केॅ रहली,
राम जे कहै सें करै सीता रानी ।

हम्में की कहियौं कोय बात,
कैन्हें विधाता करनै छै कुघात ।
किंकर्तव्य विमूढ़ होलोॅ छेलै रानी,
करभोॅ के लेख के की कहौं कहानी ।

हुनकोॅ बुद्धि केरोॅ अंत नै छेलै,
धीर, गंभीर, सुविचारित संत छेलै।
सुत के दुख सें मन विचलित छेलै,
राम बिना केना रहबै यही दुख छेलै ।

राम मनाय केॅ अइली सीता,
सुन्दर सुमुखी अति ही पुनीता ।
बोलली हम्मू जाय छियै हे माता,
आज्ञा माने जे देने छै विमाता ।

तोरोॅ सेवा नै करेॅ पारलिहौं,
एकरा सें तोहें क्षोभ नै करिहौ ।
कृपा बनैले रहियोॅ तों माता,
हमरा सें आपनोॅ मुख नय मोड़िहौ ।

कोय नै कुछु करै पारै छै,
कर्मो के गति टरै नै पारै छै
होतै वही जे विधि न लिखलकै,
कोय नै ओकरा रोकेॅ पारलकै ।

कौशल्या व्याकुल होय कहलकी,
तोरा राखतिहौं हम्में सुखमलकी !
यही आशीष दै रहलोॅ छिहौं,
अखंड सौभाग्यवती बनी रहोॅ तोहें

रानी नें सीता केेॅ समझैलकै,
पतिव्रता केरोॅ गुण बतलैलकै
वन जावै के आज्ञा देलकै
सभै तरह के बात बतैलकै ।

अभी तेॅ इ निचित ही छेलै,
सीता रामोॅ के संग जइतै ।
लछमण भी होय गेलोॅ तैयार,
राम संग रहलोॅ करी सुविचार ।