भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कौसानी में सुबह के चार चित्र-3 / सिद्धेश्वर सिंह
Kavita Kosh से
हवा में खुनक है
ठंड की
सूर्य की किरणों के साहचर्य में
खुल रही है
पेड़ों की ठिठुरी देह ।
मैं यहीं हूँ
इस अजगुत को देखता
संग है तुम्हारी आभा
बार -बार पुकारता है गेह ।