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क्या? / अशोक वाजपेयी
Kavita Kosh से
उसकी आँखें क्या देखती हैं :
पृथ्वी की कसमसाती कामना,
आकाश का नीला धीरज,
समुद्र की उत्तप्त अगाधता!
उसके हाथ क्या छूते हैं :
हवा की विवश अदृश्यता,
आग की सिर उठाती लौ,
वृक्ष की संकुचित शिराएँ।
उसका शरीर याद करता है :
अनुराग की टिमटिमाती दीपशिखाएँ,
त्वचा का उल्लसित कम्पन,
शरीर में समाने की अधीर हड़बड़ी।