जो देते हो ज्ञान यही है
क्या आख़िर सम्मान यही है
जन्म जो लें तो सुनकर बेटी
दुःख में होती माँ भी लेटी
जब आये स्कूल की बारी
कितनी करते हो तैयारी
जैसे तैसे हम पढ़ पाते
हमें पराया तुम बतलाते
बात जो कर लें हम लड़कों से
हो महरूम हम फिर पैरों से
कहाँ देखते वर भी सुंदर
मिले जहाँ से इज़्ज़त आदर
दुल्हा भी जो मिल पाता है
वो भी बिस्तर तक लाता है
दुःख को मेरे समझ न पाये
वो बस अपनी हवस मिटाये
बाहर जाकर काम करें हम
दौलत तेरे नाम करें हम
औरत औरत बस कहते हैं
सिर्फ सियासत सब करते हैं