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क्या आख़िर सम्मान यही है / जियाउर रहमान जाफरी
Kavita Kosh से
जो देते हो ज्ञान यही है
क्या आख़िर सम्मान यही है
जन्म जो लें तो सुनकर बेटी
दुःख में होती माँ भी लेटी
जब आये स्कूल की बारी
कितनी करते हो तैयारी
जैसे तैसे हम पढ़ पाते
हमें पराया तुम बतलाते
बात जो कर लें हम लड़कों से
हो महरूम हम फिर पैरों से
कहाँ देखते वर भी सुंदर
मिले जहाँ से इज़्ज़त आदर
दुल्हा भी जो मिल पाता है
वो भी बिस्तर तक लाता है
दुःख को मेरे समझ न पाये
वो बस अपनी हवस मिटाये
बाहर जाकर काम करें हम
दौलत तेरे नाम करें हम
औरत औरत बस कहते हैं
सिर्फ सियासत सब करते हैं