भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
क्या करते गर मर ना जाते / दीपक शर्मा 'दीप'
Kavita Kosh से
क्या करते गर मर ना जाते
बोलो! कब तक घर ना जाते
अपनों से ही मिल जाता जो
प्यार अगर, बाहर ना जाते
अपना दिल जो बस में होता
गोया हम तुम तर ना जाते
प्यास बुझा गर देता दरिया
भईया! हम सागर ना जाते
ज़ज़्बा ही तो काम न आया
वरना, वे कुछ कर ना जाते?
कुछ तो है ही दाल में काला
नाहक..आप उधर ना जाते
यहाँ-वहाँ हर ओर जहन्नुम
कब तक पैर किधर ना जाते