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क्या कहें क्या ना कहें / रोहित रूसिया
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क्या कहें क्या ना कहें
गीत बन ढलते रहें
श्रम से भीगी जो हो साँसे
वक़्त खेले उल्टे पासे
मंज़िले कदमों में होंगी
शर्त बस-चलते रहें
राह जब दुश्वार होगी
जीत होगी हार होगी
जिस्म की इमारतों में
ख्वाब बस पलते रहें
एक धुन्धली-सी किरण है
रिश्तों में जो आवरण है
साँस की गर्मी से अपनी
मोम से गलते रहें
क्या कहें, क्या ना कहें
गीत बन ढलते रहें