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क्या काम नहीं कुछ तुझे शोख़ी से अदा से / शोभा कुक्कल
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क्या काम नहीं कुछ तुझे शोख़ी से अदा से
पूछूँगी किसी रोज़ तेरी शर्मो-हया से
बिन बरसे गुज़र जाती है क्यों खेतों से मेरे
जब बैर नहीं मुझको कोई काली घटा से
क्या जुर्म हमारा है, ख़ता कौन सी की है
जिस वक़्त भी मिलते हो तो मिलते हो खफ़ा से
वे लोग बने बैठे हैं अब वक़्त के हाकिम
जिन लोगों के हाथों में रहा करते थे कासे
नेताओं के वादों पे यकीं कौन करे अब
देते हैं जो हर वक़्त हमें झूठे दिलासे
रफ्तार की तेज़ी तो ज़रा देखना उनकी
करने लगे जैसे कि कोई बातें हवा से
किस राह को फूलों से हम ऐ 'शोभा' सजाएं
माना कि वो आएंगे, मगर कौन दिशा से।