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क्या ख़तर है मौत का और ख़ौफ़ क्या तक़दीर से / प्रमिल चन्द्र सरीन 'अंजान'

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क्या ख़तर है मौत का और ख़ौफ़ क्या तक़दीर से
फूंक डालूंगा सितारे आहे अतिशगीर से

हाले-दिल क्या पूछते हो आशिके-दिलगीर से
रात दिन करता है बातें आपकी तस्वीर से

रब्ते बाहम का नहीं है ज़िक्र गो ख़त में मगर
उन्स है हमसे तुम्हें ज़ाहिर है ये तहरीर से

गो ज़माना राह में हाइल हो चाहे बार बार
फिर भी उनसे मिल ही लेंगे हम किसी तदबीर से

ख़ाक ऐ चारागरो ले आओ कूए-यार की
दर्दे-दिल अपना तो जायेगा इसी इकसीर से।