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क्या खोया क्या पाया हमने / दीपा मिश्रा
Kavita Kosh से
रंग बिरंगी तितली खोई
जगमग करते जुगनू खोए
खोया हमने गाँव
रात भी खोई
चाँद भी खोया
झिलमिल तारों की वह छाँव
हरे खेत लहराते खोए
बैलों की वह घंटी खोई
सोंधी-सोंधी खुशबू वाली
आंगन की वह मिट्टी खोई
वह हँसते चेहरे की झुर्रियां
उठते हाथ आशीषों के
बात- बात पर हाल पूछते
हमने सारे अपने खोए
चूल्हे की वे मस्त रोटियाँ
काकी की वह कुल्हड़ वाली
धुएँ वाली चाय की खुशबू
भाई बहन की हँसी ठिठोली
गाछ पे बैठी मुनिया खोई
कितना कुछ हाँ कितना कुछ
बस कुछ सपनों के खातिर
खुद को साबित करते करते
हमने पूरी दुनिया खोई