भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
क्या जाने यह रहगीर हैं, रहबर हैं कि रहज़न? / सीमाब अकबराबादी
Kavita Kosh से
क्या जाने यह रहगीर है, रहबर है कि रहज़न?
हम भीड़ सरे-राहगुज़र देख रहे हैं॥
पहले तो नशेमन की तबाही पै नज़र थी।
अब हौसलये-बर्क़ो-शरर देख रहे हैं॥
पूछो मेरी परवाज़ का अन्दाज़ उन्हीं से।
यह लोग जो टूटे हुए पर देख रहे हैं॥