भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

क्या तिरी दरिया दिली है ऐ-खुदा मेरे लिये / रतन पंडोरवी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

क्या तिरी दरिया दिली है ऐ-खुदा मेरे लिये
हर क़यामत हर मुसीबत हर बला मेरे लिये।

हर जफ़ा हर जौर हर सख़्ती रवा है आप को
हर शिकायत हर गिला है ना-रवा मेरे लिये।

तेग़े-अबरू, तेग़े-चीं, तेग़े-नज़र, तेग़े-अदा
कितनी तलवारों का पहरा रख दिया मेरे लिये।

मुझको तेरे वास्ते बे-मौत मर जाना पड़ा
तू न लेकिन भूल कर भी जी सका मेरे लिये।

क्यों न मेरी बे-कसी पर रो उठे ख़ुद बे-कसी
हो गया हर आसरा बे-आसरा मेरे लिये।

जो तिरे कूचे में आया वो सलामत कब रहा
मर गयी है मह्ज मेरी ही क़ज़ा मेरे लिये।

हुस्न तेरा तेरी गुमराही का मूजब बन गया
इश्क़ मेरा बन गया है रहनुमा मेरे लिये।

हो सका कोई न मुझ उफ़्तादा पा का दस्तगीर
मेरी मुश्किल ही हुई मुश्किल कुशा मेरे लिये।

अब न जाऊंगा में उन के आस्तां पर ऐ-'रतन'
आस्तां से कम नहीं हर नक़्शे-पा मेरे लिये।