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क्या मिलना फिर मिलना होगा / कल्पना पंत
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कल्पनाओं के पंख होते हैं
धरा के नहीं
समक्ष आते ही दूर गगन में मिल जाते हैं
प्रेमिल यादों की उम्र नहीं बढ़ती
प्रेमी उम्र के सोपानों पर चढ़ जाते हैं
बरसों बाद जीवन सागर के किसी छोर पर मिलकर
क्या वही तरुण मिल पाते हैं
बहुत कुछ गुजर गया होता है इस बीच
संवेदनाओं के कई तार जुड़ जाते हैं
वक्त का हर गुजरा लम्हा अपने समय की गवाही देता है
दिल की उर्वर जमीं अपने अंतस में सब समो लेती है
सपने, संघर्ष, युद्ध, द्वन्द्व, विरह, दुलार, दुख, आघात और प्रेम
क्या फिर मिलना होगा
क्या मिलना फिर मिलना होगा?