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क्या मेरा है जो आज नहीं है तेरा / हरिवंशराय बच्चन

क्या मेरा है जो आज नहीं है तेरा।
मेरी अंजलि के कुसुमों में
प्रिय तेरी गलमाला,
मेरे हाथों के दीपक से
तेरा घर उजियाला,
अमरु-गंध तेरे आँगन में
दग्ध हुआ उर मेरा,
क्या मेरा है जो आज नहीं है तेरा।
मेरा ध्यान, क्षितिज पर तेरे
संध्या की अरुणाई,
मेरी मौन समाधि कि तेरी
नींद-भरी तरुणाई,
जो सपनों का बोझ उतारे
निशि के पथ पर बैठी,
दूर मुक्ति मेरी यदि तेरा दूर अभी है डेरा।
क्या मेरा है जो आज नहीं है तेरा।