क्या लिखूँ नया
नया क्या लिखूँ
नए ढ़ंग हैं अत्याचार के
नए ढ़ंग हैं उत्पीड़न के
लपलपाती जीभें नई
कुटिल आँखों में चालें नई
मानवता पर चोट है पुरानी
घृणास्पद चेहरों पर फैला है
उदारता का आवरण
मैला अंतर्मन वही
आवरण नए
फैलती विषबाहु नई
इनमे उदरस्थ मानव
कब नया होगा???