भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

क्या लोगे? / सुकुमार राय

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

क्या-क्या लोगे बोलो भाय
ले लो बाबू, जो मन आय

फोटू-छापी, लट्टू-डोर
बिस्कुट, केक,बताशा और
माचिस, बंसी, रँगी पतंग
पेंसिल,रब्बड़, चाकू-संग?

ये सब मेरे पास न पाय
पर क्या लोगे बोलो भाय।

क्या लेना है, क्या दूँ मोल
कनियाँ, ज़रा जो़र से बोल
कपड़ा छींट, चिकन की लेस
फ़ैंसी माल सिलाई केस,
आल्ता, किलिप, लाल सिंदूर,
चूड़ी,बटन, आलपिन? दुर!

मेरे पास कहाँ से आय?
क्या- क्या लोगी बोलो माय।

क्या लेना है, मालिक बोलो
अपनी ज़रुरतें भी खोलो,
ताश की गड्डी, पाॉकेट बुक,
जूता ब्रश, मेंहदी न्यू लुक,
कलम-सियाही, गोंद चिपंक
सिगरेट, सुँघनी, सुर्ती, भंग?

वो सब मेरे पास किधर है?
बोलो कुछ दरकार अगर है।

सुकुमार राय की कविता : কিছু চাই ? (किछु चाइ?) का अनुवाद
शिव किशोर तिवारी द्वारा मूल बांग्ला से अनूदित