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क्या हुआ? / केदारनाथ अग्रवाल

समाप्त हो गया
नीले आसमान का
खूनी व्याख्यान
दबोच लिया
अंधकार ने
आसमान को
अपनी कैद में
सो गए भद्दर नींद में
खून से रंगे श्रोता
सन्नाटे में
बोलने लगे
सियार हुआ-हुआ
दिन न होने की मनाते हुए दुआ
राम जाने क्या हुआ
न जान पाईं जगरानी बुआ

रचनाकाल: १९-०९-१९६५