भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

क्या हो सकता है और क्या है / लाल्टू

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हो सकता है
दो महीने तुम्हारे साथ किसी पहाड़ी इलाके में रहना ।
हर सुबह एक दूसरे को चाय पिलाना ।
थोड़ी सी चुहल । पिछली रात पढ़ी किताब पर चर्चा ।
दोपहर खाना खाकर टहलने निकलना ।
घूमना । घूमते रहना ।
शाम कहीं मेरा बीयर या सोडा पीना ।
इन सब के बीच सामुदायिक केंद्र में बच्चों को कहानियाँ सुनाना ।
एक साथ बच्चे हो जाना ।

है
बच्चों की बातें सुन कर रोना आना ।
बच्चों को देख-देख रोना आना ।
रोते हुए कई बार कुमार विकल याद आना ।
कि 'मार्क्स और लेनिन भी रोते थे
पर रोने के बाद वे कभी नहीं सोते थे ।'
फिर यह सोच कर रोना आना
कि इन सब बातों का मतलब क्या
धरती में अब नहीं बिगड़ रहा ऐसा बचा क्या ।
इस तरह अन्दर-बाहर नदियों का बहना।
पहाड़ी इलाकों से उतरती नदियों में बहना ।
नदियों में बहना खाड़ियों सागरों में डूबना ।
कोई बीयर नहीं सोडा नहीं जो थोड़ी देर के लिए बन सके प्रवंचना ।

फिर भी तो है ही जीना ।
तुम्हें साथ लिए बहते हुए नदियाँ बन जाना ।
ताप्ती, गोदावरी, नर्मदा, गंगा
अफरात नील दज़ला
नावों में बहना, नाविकों में बहना ।
यात्राओं में विरह गीतों में बहना ।

आख़िर में कुछ लड़ाइयों में हम ही जीतेंगे ख़ुद से है कहना ।