क्यूं भीतर बैठी बाहर लिकड़ ले / रामफल सिंह 'जख्मी'
क्यूं भीतर बैठी बाहर लिकड़ ले, पड़ी मुसीबत भारी सै
यो कर्या फैसला पंचायत नै, तेरे मारण की त्यारी सै
हे तेरे मारण का फैसला, होग्या पंचात म्हं
तनै बतावण आई मैं, फर्क ना पावै बात म्हं
सुण एक तरफा फरमान, बाकी रही ना गात म्हं
दिन का उड़ग्या चैन, नींद ना आवै रात म्हं
हथियार उठा रे हाथ म्हं, जो नर और नारी सैं
म्हारी खाप का फैसला, फिलहाल हो लिया
खत्म करो छोरी नै, सबका ख्याल हो लिया
मरद, लुगाई, बूढ़ा, बच्चा सब लाल हो लिया
ना सुणी गई सफाई, इसा बुरा हाल हो लिया
इसा मलाल हो लिया, खोटा कीणा छोरी म्हारी सै
तनै खत्म करण को, सारे त्यार हो लिए
नहीं चलै तेरी चाहे, कितने राग झो लिए
सारी खोल सुणा द्यूं, एक बै सांकळ खोलिए
किते पा ज्या जगह तो, अपणी जान लको लिए
काटै वो जिसे बो लिए, ईब क्यूं पछता री सै
तेरी समझ म्हं आवै, वैसा खेल कर लिए
दो-चार हिमाती-साथी, अपणी गेल कर लिए
जै तूं लडऩा चाहवै तो, पैनी सेल कर लिए
किते अच्छा मिलै वकील, उस तै मेल कर लिए
डरै तो बहुत घणे मर लिए, ईब ‘जख्मी’ की बारी सै