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क्योंकि आदमी हैं हम-3 / हरीश बी० शर्मा
Kavita Kosh से
हे राम!
पुरुषोत्तम की यह उपाधि
तुम्हे यूँ ही नहीं दी गई है
मर्यादा के, साक्षात सत्य के अवतार थे तुम तो
तभी तो तुम पुरुषोत्तम कहलाए।
विश्वसुंदरी की तरह चलवैजयंती भी नहीं है यह उपाधि
जो हर साल किसी और को मिल जाए
क्या तुम्हें इतना भी पता नहीं है!