क्योंकि तुम स्त्री हो, प्रकृति / रंजना जायसवाल
बड़ीरचनात्मक हो तुम प्रकृति
अद्भुत है तुम्हारी कल्पना
मनुष्य की कल्पना
कहाँ पहुँच पाई है तुम तक
इतने आकार-प्रकार
रूप-रंग कहाँ से लाती हो तुम
नदी, पहाड़, झरनों आदि को तो जाने दें
देखें सिर्फ पेड़-पौधों को ही तो
चकित रह जाता है मन
कितनी बारीकी से एक-एक पत्ती
हर एक पुष्प में रंग भरती हो तुम
कई फूलों में तो होते हैं
कई-कई रंग
पँखुरी,कलँगी,पराग सबके अलग
|कैसी है तूलिका तुम्हारे पास
कि फैलता नहीं जरा-सा भी रंग
मजाकिया भी कम नहीं हो
ऐसी-ऐसी बना देती हो मुखाकृतियाँ
कि निकल पड़ता है अनायास ही
मुँह से वाह-वाह
जब भी इतराता है अपनी बुद्धि पर आदमी
दिखाकर करिश्मा हतबुद्धि कर देती हो उसे
जानती हूँ तुम स्त्री हो
इसलिए ऐसी हो
और इसीलिए तुम्हें नष्ट करने की
की जा रही हैं कोशिशें
भुलाकर इस बात को
कि वे भस्मासुर भी तुम्हारी ही कल्पना हैं
तुमसे ही है उनका अस्तित्व