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क्यों किसी की आह लूँगा / कैलाश झा 'किंकर'
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क्यों किसी की आह लूँगा
सिर्फ मैं तनख्वाह लूँगा।
दूर रहकर रिश्वतों से
सत्य की बस थाह लूँगा।
काम सब सम्पन्न होंगे
जब कभी मैं चाह लूँगा।
राह तुम अपनी पकड़ लो
मैं भी अपनी राह लूँगा।
आप जैसे दोस्तों से
क्यों नहीं इस्लाह लूँगा।